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श्रि दत्तात्रेय स्तोत्रम् जटाधरं पांडुरांगं शूलहस्तं कृपानिधिम् । अस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमंत्रस्य भगवान्नारदृषिः । अनुष्टुप् छंदः । श्रीदत्तः परमात्मा देवता । श्रीदत्तात्रेय प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥ नारद उवाच । जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च । कर्पूरकांतिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च । ह्रस्वदीर्घकृशस्थूलनामगोत्रविवर्जित । यज्ञभोक्ते च यज्ञाय यज्ञरूपधराय च । आदौ ब्रह्मा हरिर्मध्ये ह्यंते देवस्सदाशिवः । भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे । दिगंबराय दिव्याय दिव्यरूपधराय च । जंबूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुरनिवासिने । भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे । ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले । अवधूत सदानंद परब्रह्मस्वरूपिणे । सत्यरूप सदाचार सत्यधर्मपरायण । शूलहस्तगदापाणे वनमालासुकंधर । क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च । दत्त विद्याढ्य लक्ष्मीश दत्त स्वात्मस्वरूपिणे । शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम् । इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम् । इति श्रीनारदपुराणे नारदविरचितं श्री दत्तात्रेय स्तोत्रम् ।
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